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Din aate hai din jaate hai, Kuch lamhe aapke bin guzar nahin paate hai, inhi lamho ko sametkar dekhu toh aap bahut yaad aate hai.

Sunday, January 18, 2009

धर्म को कोई नाम ना दो:ओशो

मैं आपको स्मरण दिलाऊं कि न तो जैन कोई धर्म है, न हिंदू कोई धर्म है, न इस्लाम कोई धर्म है, न ईसाईयत कोई धर्म है; धर्म तो एक ही है। बहुत धर्म हो भी नहीं सकते। जो सत्
य है, वह एक ही हो सकता है। असत्य ही केवल अनेक हो सकते हैं, बीमारियां अनेक हो सकती हैं, पर स्वास्थ्य एक ही हो सकता है।

और जिस धर्म के साथ नाम हो, जितना वह नाम वजनी होगा, उतना ही धर्म कम हो जाएगा। उसमें जितने विशेषण लगेंगे, वह और बोझिल होगा और धर्म उतना ही कम हो जाएगा। सारे विशेषण धर्म नहीं हैं। इन्हीं विशेषणों के कारण हम बहुत मुसीबत में पड़े हुए हैं। मनुष्य के जीवन में, मनुष्य के इतिहास में, इन विशेषणों ने, इन संप्रदायों ने, इन नामों ने जितनी पीड़ा पहुंचाई है, न तो राजनीति ने पहुंचाई है, न अत्याचारियों ने पहुंचाई है, न पापियों ने पहुंचाई है, न दुष्टों ने पहुंचाई है, न हिंसकों ने पहुंचाई है। इस जगत को जितनी पीड़ा तथाकथित धार्मिक लोगों ने, धर्म के नाम पर चलाए हुए प्रचलित संप्रदायों ने पहुंचाई है, उतना किसी और ने नहीं पहुंचाई है।

मनुष्य और मनुष्य के बीच और कोई दीवार नहीं है, सिवाय विशेषणों के। और मैं आपको कहूं, जो मनुष्य को मनुष्य से तोड़ दे, वह मनुष्य को स्वयं से जोड़ने में सफल नहीं हो सकता। जो धर्म मनुष्य को स्वयं से जोड़ता है, वह अनिवार्य रूप से सबसे जोड़ देता है। स्वयं से जो जुड़ गया, वह सब से जुड़ गया, क्योंकि वहां स्वयं के तल पर कोई द्वंद्व नहीं है। इसलिए मैं कहता हूं कि जैन, हिंदू और मुसलमान इन शब्दों को छोड़ दें, इनके नीचे शब्दों से रहित जो शून्य मिलेगा, वह धर्म है। ये शब्द तो व्यर्थ हैं, इन शब्दों से संप्रदाय बने हैं, इन शब्दों से दीवारें बनी हैं और इन शब्दों के कारण धर्म तिरोहित होता चला जा रहा है।

किसी आदमी से पूछो धार्मिक हो? वह कहेगा, मैं जैन हूं या हिंदू हूं या मुसलमान हूं। धार्मिक आदमी इस धरती पर खोजना मुश्किल हो गया है। और अगर मैं किसी से कहूं कि मैं धार्मिक हूं, तो वह खोद-खोद कर पूछता है किस धर्म के हो? जैसे कि कोई धर्म हो सकता है।

मुझे महावीर 'जैन' नहीं मालूम होते और क्राइस्ट 'क्रिश्चियन' नहीं मालूम होते। कृष्ण मुझे हिंदू नहीं मालूम होते। अगर ये कुछ हैं, तो ये सारे लोग एक ही धर्म के हिस्से हैं। काश, हमारी आंखों से नामों का जाल गिर जाए, तो हम कितने समृद्ध हो जाएंगे। तब सारे सत्पुरुषों की परंपरा हमारी होगी। तब महावीर ही हमारे नहीं होंगे, तब कृष्ण और क्राइस्ट और कनफ्यूशियस भी हमारे होंगे। तब मनुष्य की सारी परंपराएं, प्रत्येक मनुष्य की अपनी होंगी।

संप्रदाय पकड़ लिए जाएं तो धर्म के दुश्मन हो जाते हैं। संप्रदाय छोड़ दिए जाएं तो धर्म की सीढि़यां हो जाते हैं। वे ही सीढि़यां रुकावट के पत्थर बन सकती हैं, वे ही पत्थर चढ़ने के लिए सीढि़यां बन सकते हैं। संप्रदाय जोर से पकड़े गए हैं, इसलिए धर्म जमीन पर तिरोहित होता चला जा रहा है। संप्रदायों को छोड़ देना होगा, ताकि धर्म पुनर्स्थापित हो सके।

जैन को कहना होगा मैं जैन नहीं हूं, धार्मिक हूं; हिंदू को कहना होगा, मैं हिंदू नहीं हूं धार्मिक हूं; ईसाई को कहना होगा, मैं ईसाई नहीं हूं, धार्मिक हूं। सारे जगत में धर्म के उद्घोष को वापस स्थापित करना जरूरी है। महावीर ने अपने शब्दों में कहीं नहीं कहा- जैन धर्म, वह कहते थे, सम्यक धर्म। बुद्ध ने कहीं नहीं कहा- बुद्ध धर्म, वे कहते थे, सच्चा धर्म। क्राइस्ट ने कहीं नहीं कहा- क्रिश्चियन धर्म, कृष्ण ने कहीं नहीं कहा, हिंदू धर्म; आज तक जगत में जो लोग सत्य को उपलब्ध हुए हैं, उन्होंने धर्म को कोई नाम नहीं दिया। उन्होंने दो ही धाराएं मानी हैं, एक अधर्म की धारा है, एक धर्म की धारा है। अगर अधार्मिक एक ही तरह का होता है, तो धार्मिक को एक ही तरह का होना पड़ेगा। तभी अधर्म नष्ट हो सकता है।
सौजन्य : ओशो इंटरनैशनल फाउंडेशन
(19 जनवरी ओशो का निर्वाण दिवस है।)

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